माइक्रोप्लास्टिक्स: पृथ्वी के लिए एक गंभीर खतरा

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लखनऊ: विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सीएसआरआई-सीडीआरआई लखनऊ ने स्टूडेंट-साइंटिस्ट कनेक्ट प्रोग्राम का आयोजन किया।

कार्यक्रम का विषय प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान पर ध्यान केंद्रित करने पर आधारित था एवं हरित पर्यावरण के विषय में जागरूकता फैलाने वाले अभियान #बीटप्लास्टिकपोल्यूशन (#BeatPlasticPollution) को बढ़ावा देना था।

विश्व पर्यावरण दिवस-2023

साथ ही इस कार्यक्रम की योजना जिज्ञासा प्रोग्राम के तहत अनुसंधान प्रयोगशाला आधारित शिक्षण (रिसर्च-लेबोरेट्री बेस्ड लर्निंग) के माध्यम से कक्षा शिक्षण (क्लासरूम लर्निंग) को विस्तार देना एवं प्रतिभाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की ओर प्रेरित करना भी था।

सीएसआईआर-जिज्ञासा के अंतर्गत स्टूडेंट-साइंटिस्ट कनेक्ट प्रोग्राम

सीएसआरआई-सीडीआरआई लखनऊ ने विश्व पर्यावरण दिवस के इस अवसर पर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, गोरखपुर (यूपी) से 55 स्नातक छात्रों साथ के 5 प्रोफेसर्स के एक बैच को आमंत्रित किया।

सीएसआईआर-सीडीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं सीएसआईआर-जिज्ञासा कार्यक्रम के समन्वयक, डॉ. संजीव यादव ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। पर्यावरण पर बात केन्द्रित करते हये उन्होंने अपना व्याख्यान प्रारम्भ किया, उन्होंने कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण आज एक बड़ी समस्या बन गया है।

यूएनईपी की रिपोर्ट का हवाला देते हये उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि दुनिया प्लास्टिक से भरी है, हर साल 400 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से आधे प्लास्टिक को केवल एक बार उपयोग के लिए डिज़ाइन किया गया है। उसमे से 10% से भी कम का पुनर्चक्रण (रीसायकल ) किया जाता है।

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अनुमानित 19 से 23 मिलियन टन प्लास्टिक झीलों, नदियों और समुद्रों में बहा दिया जाता है। आज, प्लास्टिक जो हमारे लैंडफिल को बंद कर देता है, महासागरों में चला जाता है या फिर जलाए जाने पर जहरीले धुएं में बदल जाता है, जिससे यह पर्यावरण के लिए एक बेहद गंभीर खतरा बन चुका है।

इतना ही नहीं, हमारे द्वारा खाए जाने वाले खाने में, प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में और यहां तक कि सांस लेने वाली हवा मे भी माइक्रोप्लास्टिक्स पाए जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए नई चुनौती बन चुके हैं।

उन्होंने आगे कहा कि प्लास्टिक प्रदूषण के प्रति सजगता एवं जागरूकता ही उससे बचने का सरल उपाय है जिसके लिए हमे प्लास्टिक के लिए 3आर (3R) फॉर्मूले को अपनाना होगा यानी प्लास्टिक को रिड्यूज, रियूज, रिसाइकिल करना ही एकमात्र एवं सरलतम समाधान है।

तत्पश्चात उन्होंने इस पर कुछ प्रकाश डाला कि कैसे हरित एवं सतत रसायन विज्ञान दृष्टिकोण की मदद से हम औषधि अनुसंधान के लिए आवश्यक विभिन्न एपीआई का पर्यावरण के अनुकूल और किफायती संश्लेषण कर सकते हैं।

औषधि अनुसंधान के बारे मे आगे जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि कैसे एक अणु को औषधि में परिवर्तित किया जाता है एवं कैसे विभिन्न वैज्ञानिक मिलकर एक दवा बनाने के लिए एक टीम के रूप में काम करते हैं। उन्होंने छात्रों को यह भी जानकारी दी कि वे सीएसआईआर-सीडीआरआई के साथ मिलकर कैसे अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं।

उसके बाद प्रतिभागियों ने जन्तु प्रयोगशाला सुविधा का भी दौरा किया जिसमे उन्हे वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं के साथ बातचीत करने का अवसर मिला और उन्होंने दवा की खोज में इन सिलिको विश्लेषण की भूमिका और अनुसंधान के लिए आवश्यक विभिन्न पशु मॉडल के महत्व के बारे में सीखा। कार्यक्रम के अंत में छात्रों एवं प्रोफेसर ने सीडीआरआई यात्रा के समग्र अनुभव पर प्रतिक्रिया दी।

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