लखनऊ। भारतीय संस्कृति विराट और उदात्त है। यहां स्त्री प्रकृति के कण-कण को अपने प्रेम का साक्षी मानती है। प्रत्येक अंश में उस दिव्य सत्ता की झलक पाती है और उससे अपने सुहाग रक्षा की प्रार्थना करती है। गंगा, सूर्य, चन्द्रमा या वट वृक्ष सब उसके लिए अक्षय सुहाग देने वाले हैं।
भारतीय सांस्कृतिक प्रतिमान और वट पूजन परम्परा पर चर्चा
ये बातें रविवार को लोक संस्कृति शोध संस्थान की मासिक लोक चौपाल में साहित्यकार डा. सुरभि सिंह ने कहीं। आनलाइन आयोजित चौपाल की अध्यक्षता चौपाल चौधरी के रूप में संगीत विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने की। इस अवसर पर प्रतिभागियों ने सुहाग गीत भी गाये।
भारतीय सांस्कृतिक प्रतिमान और वट पूजन परम्परा विषयक चौपाल में नवयुग कन्या महाविद्यालय हिन्दी विभाग की डा. अपूर्वा अवस्थी ने भारतीय संस्कृति को बहुआयामी बताते हुए त्योहार और पर्वों की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रकृति पूजन परंपरा अति प्राचीन है और मूर्ति पूजा बाद में आरम्भ हुई।
लोक संस्कृति शोध संस्थान का आयोजन
उन्होंने वटवृक्ष की पूजा, परिक्रमा और वट सावित्री व्रत परम्परा का उल्लेख करते हुए ग्रीष्मकालीन पर्व में पंखे, खरबूजा व आम आदि के दान के बारे में भी बताया। लोकानुरागी चित्रा जायसवाल ने अक्षय सुहाग कामना के प्रतीक पर्व वट अमावस्या का महात्म्य बताया वहीं बाल कवयित्री स्वरा त्रिपाठी ने स्वरचित बाल कविता वट वृक्ष है पिता समान सुनाया।
ये भी पढ़े : बच्चों ने सुनी अशक्त बालिका के ओलम्पिक विजेता बनने की कहानी
ये भी पढ़े : ऋतु गीतों से गुलजार हुई लोक चौपाल, बसंत गीतों की लोक परंपरा पर भी चर्चा
लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने बताया कि चौपाल में सावित्री-सत्यवान की कथा के साथ ही सांगीतिक प्रस्तुतियां भी हुईं जिसमें प्रतिभागियों ने सुहाग गीत गाये। शुभारम्भ युवा गायिका पल्लवी निगम ने सुहाग महारानी बन्नी को देना सुहाग से की।
शकुन्तला श्रीवास्तव ने चुटकी भर सेनुरा महंग भये बाबुल चुनरी भइल अनमोल रे, सरिता श्रीवास्तव ने देख लो भोले गौरा का मुख कि गौरा सुहाग भरे, वरिष्ठ लोक गायिका डा. भक्ति शुक्ला ने स्वरचित गीत बुढ़वा बरगद का पूजबै हम भाग सुहाग खातिर हो, अपर्णा सिंह ने सिन्दूर डिबिया भरा सुहाग बेटी जतन से रखना रे तथा मोरे पिछुवरवा सुपरिया कै बिरवा, सरिता अग्रवाल ने तेरे माथे सेनुरवा आज सुहागन प्यारा लगे, सुनीता श्रीवास्तव ने कहवां से आवा रे सिन्दुरवा कहां केरि डिबिया हो, अरुणा उपाध्याय ने ऊँच ऊँच बखरी उठावहु मोरे बाबा ऊँच ऊँच राखहु मोहार रे, रेखा मिश्रा ने बरगद के करबै पुजनिया सुहाग बाढ़ै सखिया, संगीता खरे ने बहना घूम री भांवर सात रे, निधि निगम ने अमर सुहाग मैं तो मांग लाई रे, उषा पाण्डिया ने मांगूं मैं अटल सुहाग जगदम्बे तथा भारती श्रीवास्तव ने सुहाग बरसे मैया मोरे अंगना सुनाया।
चौपाल चौधरी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने बरगद की विशेषतायें बताते हुए चौपाल में प्रस्तुत हुए गीतों की समीक्षा की। सुधा द्विवेदी ने चौपाल में सम्मिलित लोगों के प्रति आभार प्रदर्शित किया।