जनजाति भागीदारी उत्सव के दूसरे दिन दिखी देश की उन्नत जनजाति की थाती

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लखनऊ : जनजाति लोकनायक बिरसा मुंडा की 148वीं जयंती के अवसर पर “जनजाति भागीदारी उत्सव” के दूसरे दिन गुरुवार को मुख्य अतिथि समाज कल्याण और अनुसूचित जाति व जनजाति कल्याण राज्य मंत्री संजीव कुमार गोंड थे।

उन्होंने लोक नायक बिरसा मुण्डा की मूर्ति पर माल्यार्पण कर इस संध्या की शुरुआत की। इस अवसर पर देश के विभिन्न प्रदेशों की संस्कृति एक ही मंच पर पूर्ण वैभव के साथ देखने को मिली वहीं संगोष्ठी में सशक्त भारत विषय पर परिचर्चा की गई।

21 नवम्बर तक आयोजित इस “जनजाति भागीदारी उत्सव” के दूसरे दिन आयोजक स्थल गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी परिसर में “सशक्त जनजाति, सशक्त भारत” विषयक परिचर्चा हुई।

दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, नेशनल एस.सी.एस.टी. हब एम.एस.एम.ई. के सहयोग से इसका आयोजन किया गया था। इसमें जनजातियों के उद्यम के प्रति जागरूकता पर चर्चा की गयी।

गोष्ठी में जनजाति उद्यमी मुकेश पनिका और ए.नायक ने जनजाति समाज के उद्म से जुड़ी जरुरतों के साथ ही समाज की प्राथमिकता और संघर्ष के संदर्भ में अपने मत प्रकट किए। इस क्रम में एम.एस.एम.ई. के निदेशक विवेक वर्मा ने अहम् विचार प्रकट किए।

उत्सव के दूसरे संध्या कालीन सत्र में नागालैण्ड का नजान्ता नृत्य, छत्तीसगढ़ का गौर माड़िया नृत्य, उत्तर प्रदेश का कर्मा नृत्य, सहरिया नृत्य, झूमरा नृत्य, कोल्हाई नृत्य, राजस्थान का गरासिया नृत्य, कालबेलिया नृत्य, मध्य प्रदेश का गदली नृत्य, गुदम्ब बाजा नृत्य, पश्चिम बंगाल का कोरा नृत्य, बिहार का संथाल नृत्य,

उत्तराखंड का झीझी नृत्य, जम्मू कश्मीर का गौजरी नृत्य, उड़ीसा का दलखाई नृत्य, असम का राभा नृत्य, कर्नाटक का लम्बाड़ी नृत्य, गुजरात का मेवाती नृत्य देखते ही बना। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति, संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी, उप निदेशक, समाज कल्याण डॉ.प्रियंका वर्मा सहित अन्य उपस्थित रहे।

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जनजाति भागीदारी उत्सव मे व्यंजन मेला में उत्तर प्रदेश का भुनी आलू चटनी, कुमायूँनी खाना, मक्खन मलाई, रबड़ी दूध, चाट का स्वाद चखने का अवसर मिल रहा है वहीं राजस्थान के व्यंजन, मुंगौड़ी, जलेबी, तंदूरी चाय, जनजातीय व्यंजन, महाराष्ट्र के व्यंजन, मटका रोटी, बिहार के व्यंजन, खाजा, मनेर के लड्डू भी इस आयोजन का स्वाद बढ़ा रहा है।

शिल्प मेला में उत्तर प्रदेश का मूँज शिल्प, जलकुंभी से बने शिल्प उत्पाद, काशीदाकारी, बनारसी साडी, कोटा साडी, सहरिया जनजाति उत्पाद, गौरा पत्थर शिल्प, लकड़ी के खिलौने विक्रय के लिए प्रदर्शित किये जाएंगे।

इस क्रम में मध्य प्रदेश की माहेश्वरी साड़ी, चन्देरी साही, बाँस शिल्प, जनजातीय बीड ज्वैलरी, पश्चिम बंगाल की काथा साड़ी, ड्राई फ्लावर, धान ज्वेलरी, झारखण्ड की सिल्क साड़ी,

हैण्डलूम टेक्सटाइल्स, तेलांगना की पोचमपल्ली, साड़ी और चादर, महाराष्ट्र की कोसा सिल्क साड़ी, राजस्थान का सांगानेरी ऍण्ड ब्लाक प्रिंट, छत्तीसगढ का लौह शिल्प, ढोकरा एवं बाँस शिल्प, असम का हैण्डलूम गारमेंट और सिक्किम का हैण्डलूम टेक्सटाइल्स भी शामिल किया गया है।

17 नवम्बर के आकर्षण

• सांस्कृतिक संध्या –
नागालैण्ड का नजान्ता नृत्य, छत्तीसगढ़ का गौर माड़िया नृत्य, जम्मू कश्मीर का गौजरी नृत्य, उड़ीसा का दलखाई नृत्य, राजस्थान का गरासिया नृत्य, कालबेलिया नृत्य, मध्य प्रदेश का गदली नृत्य, गुदम्ब बाजा नृत्य, पं.बंगाल का कोरा नृत्य, बिहार का संथाल नृत्य, असम का राभा नृत्य, कर्नाटक का लम्बाड़ी नृत्य, उत्तर प्रदेश का शैला नृत्य, गौड़ी नृत्य, सखिया नृत्य, सिक्किम का सिंघीछम / याकछम, गुजरात का मेवासी

• संगोष्ठी का विषय – “संस्कृति और विकास” जनजाति समाज पर विमर्श
• आओ खेले खेल
• आओ रंग भरे
• आजा नचले

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