4 से 50 साल तक के 70 शिष्यों की प्रस्तुतियों ने जीता दिल

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लखनऊ। अंतरराष्ट्रीय कथक नृत्यांगना डॉ.आकांक्षा श्रीवास्तव की सांस्कृतिक संस्था “पद्मजा कला संस्थान” का वार्षिकोत्सव “परम्परा-2025”, मंगलवार को गोमती नगर स्थित उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में आयोजित किया गया।

इस भव्य समारोह में कथक गुरु डॉ. आकांक्षा श्रीवास्तव के 70 से अधिक शिष्यों की कथक प्रस्तुतियां हुईं जिसमें 4 वर्ष की आयु से लेकर 50 वर्ष तक के शिष्यों ने कथक नृत्य के विभिन्न आयामों को प्रदर्शित किया।

सम्मान व कथक प्रस्तुति, पूरा हुआ “पद्मजा कला संस्थान” का वार्षिकोत्सव “परंपरा-2025”

इस अवसर पर पूर्व प्रवक्ता पंडित धर्मनाथ मिश्रा भी उपस्थित रहे। समारोह में विभिन्न विधाओं के प्रसिद्ध कलाकारों को सम्मानित भी किया गया। इसमें कथक के क्षेत्र में पंडित अनुज मिश्रा, भरतनाट्यम के क्षेत्र में सय्यद शमसुर रहमान, गायन के क्षेत्र में बृजेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, तबला के क्षेत्र में अरुण भट्ट, रंगमंच के क्षेत्र में पुनीत अस्थाना का सम्मान किया गया।

सांस्कृतिक सोपान के पहले चरण में “अन्त:” में डॉ. आकांक्षा श्रीवास्तव की परिकल्पना में संत कबीर दास द्वारा रचित भजन “मत कर मोह तू हरि भजन को मान रे’’ पर शिजा राय, खुशी मौर्या, शैली मौर्या, प्रीति तिवारी, आरोहिणी चौधरी, सिमरन कश्यप, नित्या निगम, गौरी शर्मा और स्वयं डॉ.आकांक्षा श्रीवास्तव ने नृत्य किया।

डॉ.आकांक्षा श्रीवास्तव की परिकल्पना,  कबीर से लेकर कृष्ण लीला तक की मनभावन प्रस्तुतियां

इस समारोह की मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. विद्या बिंदु सिंह थीं वहीं विशिष्ट अतिथियों के रूप में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय और बिरजू महाराज कथक संस्थान की अध्यक्ष डॉ. कुमकुम धर को आमंत्रित किया गया था।

प्रखर पाण्डेय के संगीत निर्देशन और गायन में हुई इस प्रस्तुति में तबला और पखावज पर पंडित विकास मिश्रा, सितार पर नीरज मिश्रा और बांसुरी पर दिपेन्द्र लाल कुंवर ने प्रभावी संगत दी।

दूसरी प्रस्तुति “अभिसार” में कथक के श्रंगार पक्ष को दर्शाया गया। संयोग और वियोग पर आधारित इस प्रस्तुति के बोल थे – “मन ले गयो रे सांवरा, सखी री मोरा लागे कैसे जियरा।”

राग मारू बिहाग, तीन ताल में निबद्ध इस रचना में डॉ. आकांक्षा श्रीवास्तव के साथ शिजा, आरोहिणी, सिमरन, शैली, खुशी, गौरी, नित्या, प्रीति, विकास, प्रखर, अनेश, अतुल और आदित्य ने सुन्दर नृत्य कर प्रशंसा हासिल की।

कथक के साथ-साथ, तबला-वादन और शास्त्रीय गायन की भी हुई प्रस्तुतियां

तीसरी प्रस्तुति कृष्ण लीला में बाल कलाकारों ने “मइया मोरी मैं नहीं माखन खायो’’ पर मनभावन नृत्य कर वाहवाही लूटी। डॉ. आकांक्षा श्रीवास्तव के नृत्य निर्देशन और पढंत में हुयी

इस प्रस्तुति में उन्नयन, अहाना, ईशानी, वरूनिका, नायरा, वारिधि, साक्षी, अद्विका, आराध्या ने नृत्य किया वहीं मां यशोदा का किरदार गौरी शर्मा ने निभाया। इसमें दिनकर द्विवेदी ने गायन, नीतीश भारती ने तबला वादन और डॉ.नवीन मिश्रा ने सितार वादन किया।

चौथी प्रस्तुति नृत्य नमन में कथक के पारम्परिक स्वरूप को, तीन ताल में टुकड़े, परन, तिहाई, नौहक्का और लड़ी के माध्यम से सशक्त रूप में पेश किया गया। इसमें श्रेया अग्रहरि, पर्णिका श्रीवास्तव, मंगला श्रीवास्तव, अनामिका यादव, प्रिशा अग्रवाल, मोनिका सरीन, स्वधा और वैष्णवी ने भाग लिया।

पांचवी प्रस्तुति “सृजन” में पारंपरिक कथक के साथ-साथ नवीन प्रयोगों को भी दर्शाया गया। इसमें कथक को म्यूजिक फ्यूजन के साथ मंच पर लाना एक अनूठा प्रयास रहा जिसे दर्शकों की बहुत सराहना मिली।

छठी पायदान पर सम्मान समारोह के उपरांत सातवीं प्रस्तुति ताल संस्कार रही। इसमें संस्थान के माध्यम से तबला वादन में विकास मिश्रा से प्रशिक्षण हासिल कर रहे शिष्य, मनन मिश्रा ने एकल प्रस्तुति दी।

उन्होंने रूपक ताल में पारम्परिक बंदिशों को सुनाया। इस क्रम में अनेश रावत, रियांश श्रीवास्तव, निखिल, ज्योति ने तीन ताल में कायदे, टुकड़ें, बंदिशों को सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरीं।

आठवीं प्रस्तुति एकल गायन की रही। इसमें स्थानीय बाल गायक और रियलिटी शो सिंगिंग सुपरस्टार मास्टर अर्थव ने शास्त्रीय गायन के अंतर्गत राग मधुवंती तीन ताल में रचना “उनसो मोरी लगन लागी रे” और मिया मल्हार राग में रचना “अति घनन घोर-घोर घेरी आई बदरवा” सुनायी तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।

नवी प्रस्तुति “मधुराष्टकम्” की रही। इसमें बेंगलुरु से आई श्रीमती रूचि दोषी ने कृष्ण की छवि को मधुराष्ट्रकम द्वारा अत्यंत मनभावन रूप में पेश किया।

दसवी प्रस्तुति कथक नृत्यांजली रही। इसमें चार साल से 45 साल तक के शिष्यों ने अपने गुरु को नृत्य के माध्यम से नमन किया। इसमें नूतन, शाम्भवी, श्वेता, आरना, ईशानी, प्रियांशु, अद्विका, अहाना, उन्नयन, आराध्या, साक्षी, श्रीदेवी, वान्या, अर्शिता, अनिका, प्रतिष्ठा, मान्डवी, शुभांगी, आकृष्टि ने अपनी अर्जित कलात्मकता का प्रभावी प्रदर्शन कर दर्शकों का हृदय जीत लिया।

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11वीं प्रस्तुति तराना, राग कलावती, एक ताल में निबद्ध थी। इसमें मुगलकालीन कथक की परंपरा को, प्रियांशी, रिदम, देवस्मिता, समृद्धी, पाखी, रचना, आयुषी, नीतू और आकृति ने नजाकत और नफासत के साथ पेश किया।

12वीं प्रस्तुति सरगम रही। इसमें सभी 70 कलाकारों ने एक साथ मंच पर जोशीली प्रस्तुति देकर समारोह को विराम दिया। इस अवसर पर पद्मजा कला संस्थान के अध्यक्ष सुभाष चन्द्र श्रीवास्तव सहित अन्य विशिष्ट जन उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन राजेन्द्र विश्वकर्मा “हरिहर” ने किया। अंत में संस्थान की सचिव डॉ. आकांक्षा श्रीवास्तव ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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