पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए फिलहाल कोई प्रभावी दवा उपलब्ध नहीं 

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लखनऊ: सीएसआईआर- सीडीआरआई में डॉ. अतुल कुमार (मुख्य वैज्ञानिक, औषधीय एवं प्रक्रिया रसायन विभाग), द्वारा संस्थान को दिये गए उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने एवं सम्मानित करने हेतु आज एक लघु संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वे इसी महीने की 30 तारीख को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं।

इसी माह सेवानिवृत्त हो रहे डॉ. अतुल कुमार का हुआ अभिनंदन 

निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई, डॉ. राधा रंगराजन ने संगोष्ठी में सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया और औषधीय रसायन विज्ञान के क्षेत्र में डॉ अतुला कुमार के उत्कृष्ट योगदान हेतु उनका धन्यवाद दिया।

डॉ. अतुल कुमार के समूह के शोध कार्ये में मुख्यतः महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी विकारों (डब्ल्यूएचआरडी) के लिए जैविक रूप से महत्वपूर्ण योगिकों के तर्कसंगत डिजाइन और संश्लेषण शामिल हैं। उन्होंने “CENTHANK” CDRI-99/373 नामक यौगिक का डिज़ाइन एवं संश्लेषण किया है,

जो ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम और उपचार में एक आशाजनक विकल्प हो सकता है। सेन्थांक (CENTHANK) एक मौखिक रूप से सक्रिय यौगिक है और रालोक्सिफ़ेन और बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स जैसी मौजूदा नैदानिक औषधियों की तुलना में अधिक प्रभावी है।

सीडीआरआई में औषधीय रसायन विज्ञान मे उपायुक्त (सस्टेनेबल) दृष्टिकोण पर लघु संगोष्ठी

इसके संश्लेषण की “वन पॉट सिंथेसिस” विधि के कारण लागत प्रभावी (कास्ट इफेक्टिव) है। यह अणु अभी प्रथम चरण के नैदानिक परीक्षण में है।  इसके अलावा उन्होंने स्मार्ट ड्रग मोडाफिनिल के कुशल एटम और स्टेप इकोनॉमिक (ईएएसई) संश्लेषण जैसे विभिन्न सक्रिय फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआई) और बायोएक्टिव प्राकृतिक उत्पादों के ग्रीन और लागत प्रभावी संश्लेषण के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

दुनिया भर में लगभग 10 मिलियन लोग पार्किंसंस रोग से पीड़ित : डॉ. रावत

इस अवसर पर संगोष्ठी में दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रोफेसर दीवान एस. रावत, ने पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए आशा की किरण के रूप में न्यूक्लियर रिसेप्टर नर1 (Nurr1) एगोनिस्ट की खोज के बारे में जानकारी दी। उन्होंने आगे कहा कि पार्किंसंस रोग एक न्यूरो-डिजनरेटिव डिसऑर्डर है।

दुनिया भर में लगभग 10 मिलियन लोगों को पार्किंसंस रोग है और पार्किंसंस रोग के इलाज हेतु फिलहाल कोई प्रभावी दवा उपलब्ध नहीं है। अभी उपलब्ध उपचारो का उद्देश्य लक्षणों को कम करना ही है।

तत्पश्चात, हैदराबाद विश्वविद्यालय की महिला वैज्ञानिक,  डॉ. आकांक्षा गुप्ता ने काइरल पूल एजेंट के रूप में कार्बोहाइड्रेट के माध्यम से एंटी-कैंसर एजेंट्स, बेंगामाइड एवं पायरानिसिन जो की प्राकृतिक उत्पाद हैं, का लैब में सम्पूर्ण संश्लेषण की क्रियाविधि की खोज के बारे में चर्चा की।

उन्होंने कहा कि इन दो प्राकृतिक यौगिकों का प्रयोगशाला में संश्लेषण किये जाने की अवश्यकता है इनके प्राकृतिक स्रोत सीमित है। लैब में इन यौगिकों संश्लेषण पहले की रिपोर्ट की तुलना में छोटा और सरल है और महत्वपूर्ण मात्रा में तेजी से प्राप्त किया जा सकता है।

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डॉ. सिद्धार्थ शर्मा सहायक प्राध्यापक रसायन विज्ञान विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर ने आइसोसाइनाइड्स के कार्बनिक रसायन एवं उनकी फ्लास्क से इलेक्ट्रोकेमिकल सेल तक की यात्रा के विषय के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने आगे उल्लेख किया कि विभिन्न परिवर्तनों के लिए कार्बनिक रसायन में आइसोसाइनाइड्स का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिक सत्र के पश्चात इस संगोष्ठी में डॉ. अतुल कुमार के लगभग सभी 23 पीएचडी छात्र-छात्राओं ने कार्यक्रम में सम्मिलित होकर उनका अभिनंदन किया और कृतज्ञता के साथ अपने विचार साझा किए।

निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने उन्हें पट्टिका और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। डॉ. संजय बत्रा और डॉ. पी.पी. यादव ने धन्यवाद ज्ञापन किया और आधे दिवसीय विचार गोष्ठी का समापन किया।

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