अपोलोमेडिक्स : विशेष चाइल्ड डेवलपमेंट क्लिनिक में इन बीमारियों से मिलेगी निजात

0
36

लखनऊ। 14 वर्ष से कम आयु के लगभग 5 फीसदी बच्चों को किसी न किसी प्रकार की दिव्यांगता का सामना करना पड़ता है। यह आंकड़ा वैश्विक स्तर पर 2 फीसदी से लेकर 17 फीसदी तक हो सकता है।

वहीं बच्चों से जुड़ी इस बीमारी से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल्स लखनऊ ने बच्चों में बढ़ती विकासात्मक देरी की समस्या को ध्यान में रखते हुए विशेष चाइल्ड डेवलपमेंट क्लिनिक की शुरुआत की है।

यह क्लीनिक एसोसिएट डायरेक्टर, पीडियाट्रिक्स और नियोनेटोलॉजी, डॉ. प्रांजली सक्सेना के नेतृत्व में संचालित होगा। सर्टिफाइड चाइल्ड डिवेलपमेंट स्पेशलिस्ट डॉ. सक्सेना को बाल चिकित्सा देखभाल का लंबा अनुभव है।

यहां बच्चों में विकास से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने में सहायता मिलेगी और प्रारंभिक पहचान व डायग्नोसिस से लेकर विशेष थेरेपी और इंटरवेंशन्स जैसी सेवाएं मिलेगी।

क्लिनिक के शुभारंभ पर डॉ. प्रांजली सक्सेना ने बच्चों में तेजी से बढ़ते विकासात्मक और व्यवहार संबंधी विकारों पर बताया कि बदलते सामाजिक परिवेश में न्यूक्लियर परिवार, माता-पिता की उम्र में वृद्धि, स्क्रीन टाइम में इजाफा और हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी जैसे कारक बच्चों में इन विकारों को बढ़ा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, अमेरिका में वर्ष 2023 तक 36 में से 1 बच्चा ऑटिज्म से प्रभावित है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा प्रत्येक 100 में से 1 बच्चे का है। इसके अलावा, जिन बच्चों को गर्भावस्था या नवजात अवस्था में कोई समस्या होती है, उनमें लंबे समय तक चलने वाले न्यूरोडिवेलपमेंटल विकारों की संभावना अधिक होती है।

यह समस्याएँ लर्निंग डिफिकल्टी, संज्ञानात्मक या विकासात्मक देरी, सेरेब्रल पाल्सी, सुनने और देखने की क्षमता में कमी जैसी कठिनाइयों के रूप में सामने आती हैं। इसके अतिरिक्त, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर और बोलने में देरी व भाषा समझने में समस्या जैसे व्यवहारिक विकार भी देखे जाते हैं।”

डॉ. सक्सेना ने बताया कि इन देरी के कारण आनुवंशिक, पर्यावरणीय या प्रारंभिक बचपन की बीमारियों और कुपोषण से भी जुड़े हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी के बाद “वर्चुअल ऑटिज्म” के मामलों में वृद्धि देखी गई है, विशेष रूप से 3 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में।

पारंपरिक ऑटिज्म जहां जैविक विकास से जुड़ा होता है, वहीं वर्चुअल ऑटिज्म मोबाइल फोन, टैबलेट और अन्य गैजेट्स के अत्यधिक उपयोग से संबंधित है। उन्होंने कहा, “अगर हम इन विकासात्मक समस्याओं की पहचान जल्दी कर लें तो बच्चों के जीवन में बड़ा बदलाव संभव है।

समय रहते हस्तक्षेप से बच्चों में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। हमारी क्लिनिक का उद्देश्य इन समस्याओं की शीघ्र पहचान कर, वैज्ञानिक आधार पर सटीक उपचार और थेरेपी प्रदान करना है। हम मोटर डिले से लेकर संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास से जुड़ी समस्याओं पर काम करेंगे तथा माता-पिता के लिए एक ही छत के नीचे डायग्नोसिस से लेकर काउंसलिंग व थेरेपी जैसी सेवाएँ देंगे।”

ये भी पढ़ें : गणतंत्र दिवस पर अपोलोमेडिक्स का संकल्प: हर नागरिक बनेगा जीवन रक्षक

अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल्स लखनऊ के एमडी व सीईओ, डॉ. मयंक सोमानी ने कहा कि हमारा प्रयास बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का है। चाइल्ड डिवेलपमेंट क्लिनिक की शुरुआत हमारे मिशन का हिस्सा है ताकि बच्चों को समर्पित और संवेदनशील देखभाल मिल सके।

विकासात्मक समस्याओं के बढ़ते मामलों को देखते हुए यह जरूरी है कि इन मुद्दों को समय रहते पहचाना जाए और बच्चों को वह सहायता मिले, जिसकी उन्हें ज़रूरत है ताकि वे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सकें। हमें गर्व है कि डॉ. प्रांजली सक्सेना इस पहल का नेतृत्व कर रही हैं। हमें विश्वास है कि यह क्लिनिक कई बच्चों और उनके परिवारों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here