किसी भी नवीनतम शोध को पेटेंट कराते समय इन बातों का रखना होगा ध्यान 

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लखनऊ। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उत्तर प्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में नवाचार, पहुंच तथा लाभ बँटवारे तथा प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण विषय पर एक दिवसीय संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन सोमवार को किया गया।

गन्ना संस्थान में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों पर संवेदीकरण कार्यशाला आयोजित

कार्यशाला की शुरुआत में संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई के प्रभारी डॉ. लाल सिंह गंगवार  ने कार्यशाला की विषय वस्तु पर प्रकाश डाला। डॉ.जेपी मिश्रा, पूर्व सहायक महानिदेशक (बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं  केंद्र राज्य समन्वयन), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने बौद्धिक सम्पदा अधिकार के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।

डॉ. विवेक श्रीवास्तव, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक, सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ नेबौद्धिक सम्पदा अधिकारों के पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क्स, इंडस्ट्रियल डिजाइन, ट्रेड सीक्रेट्स, पादप किस्में, भौगौलिक संकेतों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

डॉ. श्रीपति राव कुलकर्णी, प्रधाव वैज्ञानिक, सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने आविष्कार: सुरक्षा एवं प्रबंधन विषय पर अपने विचार बताते हुए शोधकर्ताओं द्वारा अपने शोध को पेटेंट के रूप में सुरक्षित रखने की पूरी प्रक्रिया विस्तार से समझाई।

डॉ. कुलकर्णी ने बताया कि किसी भी नवीनतम शोध को पेटेंट करने हेतु  उस उत्पाद एवं प्रक्रिया में नवीनता, गैर स्पशता तथा उपयोगिता जैसी कसौटी पर खरे उतारने चाहिए।

डॉ. विकास भाटी, सहायक आचार्य,डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ ने  बौद्धिक सम्पदा अधिकार: मूलभूत एवं समकालीन मामले एवं चुनौतियाँ विषय पर व्याख्यान देते हुए पेटेंट एक्ट  1970, पीपीवी एंड एफ़आरए 2001 टाथा कॉपीराइट एक्ट 1957 के विशेष प्रावधानों के बारे में विस्तार से बताया।

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लाल सिंह गंगवार, प्रधान वैज्ञानिक (कृषि अर्थशास्त्र) एवं प्रभारी, संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने जैवविविधता  अधिनियम 2002 तथा जैवविविधता नियम 2004 में निहित प्रावधानों के बारे में बताते हुए कहा कि जैविक संसाधनों के व्यावसायिक उपयोग के अंतर्गत वार्षिक लाभ

अथवा उत्पाद के एक्स फैक्ट्री बिक्री से अर्जित मौद्रिक लाभ एक करोड़ रुपए तक होने पर राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को 0.1%,1 से 3 करोड़ रुपए तक के मौद्रिक लाभ पर 0.2 से 0.3% तथा 3 करोड़ से अधिक के मौद्रिक लाभ पर 0.3 से 0.5% अंश का भुगतान करना होगा।

कार्यशाला की अध्यक्षता डॉ. रासप्पा विश्वनाथन, निदेशक,भाकृअनुप – भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ  ने करते हुए संस्थान के वैज्ञानिकों से अपनी शोध को  पेटेंट के रूप में सुरक्षित करने की सलाह दी।

अंत में, डॉ. अश्विनी कुमार शर्मा, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी, कृषि ज्ञान प्रबंधन इकाई ने धन्यवाद ज्ञापन व्यक्त किया। संचालन डॉ. कामिनी सिंह, शोध अध्यावेत्ता ने किया।

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