भाषा विस्तार के लिए उसे राजकाज की भाषा बनना जरूरी : नरेंद्र सिंह मोंगा

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लखनऊ। केवल धार्मिक साहित्य से भाषा समृद्ध होने से ही किसी भाषा का विस्तार नहीं हो जाता है। अगर ऐसा होता तो पूरे भारत में केवल एक भाषा संस्कृत का ही प्रसार होता और पूरे देश में बोली जाती। भाषा के विस्तार के लिए उसे शिक्षा का माध्यम बनना और राजकाज की भाषा बनना भी जरूरी है।

यह बातें आज़ाद लेखक कवि सभा के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह मोंगा ने बुधवार को कहीं। वह आज़ाद लेखक कवि सभा के अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मां बोली पंजाबी भाषा को समर्पित कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे।

आजाद लेखक कवि सभा उप्र लखनऊ की ओर से हुआ कार्यक्रम

कार्यक्रम आलमबाग वीआईपी रोड स्थित गुरद्वारा भाई लालो जी में हुआ। कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मां बोली पंजाबी भाषा को समर्पित था। जिसमें विभिन्न पंजाबी सांस्कृतिक समूहों और विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने नाटक, कविता और भाषण कर प्रभावित किया।

वक्ताओं प्रो मनमीत कौर सोढ़ी, खालसा ऐसेन्ट कालेज उन्नाव के चेयरमैन गुरशरण सिंह, सभा के महासचिव दविन्दर पाल सिंह बग्गा, भाई लालो जी गुरद्वारे के ज्ञान सिंह धंजल ने पंजाबी भाषा के इतिहास एवं प्रचार-प्रसार के उपाय बताए। निबंध प्रतियोगिता में विजेताओं को ईनाम दिये गए।

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कार्यक्रम में त्रिलोक सिंह बहल एवं अजीत सिंह का विशेष योगदान रहा। कार्यक्रम संचालन सरबजीत सिंह बख्शीश ने किया। आखिर में सिख यंगमेंस एसोसिएशन के अध्यक्ष हरपाल सिंह गुलाटी के अलावा लखनऊ की सभी सिंह सभाओं व सिख संस्थाओं के पदाधिकारी सदस्य शामिल रहे।

उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, श्री गुरु गोबिंद सिंह स्टडी सर्किल एवं दशमेश पब्लिक स्कूल ने गुरुमुखी भाषा के प्रचार-प्रसार प्रति प्रतिबद्धता दिखाई। संयोजक त्रिलोक सिंह बहल ने निदेशक उप्र पंजाबी अकादमी, सिख समाज के प्रतिनिधियों व अन्य अतिथियों का आभार जताया।

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