उत्तर प्रदेश जल्द बनेगा इंडिगो की खेती का प्रमुख केंद्र

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लखनऊ: नेचुरल एवं आर्गेनिक डाई के उत्पादन में विश्व की अग्रणी कंपनी एएमए हर्बल ने किसान दिवस के मौके पर कुर्सी रोड पर स्थित अमरसंडा गांव के किसानों को उन्नत खेती, जैविक खेती, खेती के दौरान पानी की बचत व कैश क्रॉप इंडिगो की खेती के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारंभ की घोषणा की।

साल भर चलने वाले कार्यक्रम के दौरान एएमए हर्बल द्वारा प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के  लगभग 2000 किसानों को प्रशिक्षित किया जाएगा।

एएमए हर्बल ने इंडिगो की खेती के लिए शुरू किया प्रशिक्षण कार्यक्रम

घरेलू प्राकृतिक डाई उत्पादों के लिए सर्टिफिकेशन प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए एक विशेष पैनल के ‘प्रोजेक्ट लीडर कम कन्वीनर ‘ के रूप में नामित एएमए हर्बल के को फाउंडर व सीईओ यावर अली शाह ने कहा कि  आज की खेती और कृषि अत्यधिक औद्योगीकृत और वैज्ञानिक हैं और किसान भाइयों को इसके लिए खुद को तैयार करना होगा।”

श्री शाह ने कहा, “इंडिगो की खेती यूपी के किसानों के लिए गन्ना और मेंथा जैसी अधिक उपज देने वाली नकदी फसल के रूप में अपनाने का एक बेहतरीन विकल्प है।  एएमए हर्बल भारत में इंडिगो की फसल का सबसे बड़ा खरीदार है।  इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी

बल्कि आज जो सिंथेटिक डाई के लिए चीन पर निर्भरता है वह भी खत्म हो जाएगी। आज दुनिया भर के देश टेक्सटाइल इंडस्ट्री में कार्बन फुटप्रिंट कम करने के प्रयास में हैं। ऐसे में इंडिगो की व्यापक पैमाने पर खेती भारत के साथ ही हमारे प्रदेश को भी इस क्षेत्र में अग्रणी स्थान दिलाएगी।

यही कारण है कि भारत में एक बार फिर टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने केमिकल डाइज के स्थान पर प्राकृतिक डाई के प्रयोग पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है और इसके लिए मानक भी विकसित किये गए हैं।”

हम्ज़ा ज़ैदी, वाईस प्रेसिडेंट, सस्टेनेबल बिजनेस अपॉर्चुनिटीज, एएमए हर्बल ने बताया, “एएमए हर्बल किसानों को नकदी फसलों की खेती के लाभ के बारे में जागरुक बनाने के लिए अगले एक वर्ष तक हर महीने किसान गोष्ठी व प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करेगा।

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इंडिगो जैसी नकदी फसल की खेती करने से एक तो सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता 70 फीसदी तक कम की जा सकती है। इंडिगो की फसल को कोई जानवर खाता नहीं है। साथ ही इसकी खेती से आमदनी भी 30 फीसदी तक बढ़ जाती है। ”

श्री जैदी ने बताया, “कुर्सी रोड स्थित अमरसंडा गांव में किसानों ने इंडिगो (नील) की खेती को अपनाया। इसमें लागत से चार गुना तक मुनाफा हुआ। किसानों ने यह भी बताया कि यह बहुत ही आसान खेती है। इंडिगो की खेती करने पर एक एकड़ में 25 से 30 हजार रुपए का खर्च आता है।

इसको बेचने के बाद 90 हजार से एक लाख रुपए तक मिलते हैं। इसके बीज को छिड़क कर और जमीन में गाड़ कर दो तरह से खेती की जा रही है। इसकी 7-8 बार सिंचाई करनी होती है। जमीन को अगर समतल कर दिया जाए, तो पानी की लागत कम होती है।”

एएमए हर्बल के एग्रोनॉमिस्ट देवव्रत सिंह ने बताया, “इंडिगो की फसल तैयार होने में 90 दिन लगते हैं। इसे तने से काट लिया जाता है। उसके बाद पत्तियों को काट लिया जाता है। इसके बाद उसको धूप में सूखने के लिए डाल दिया जाता है। सूखने के बाद उन पत्तियों का पाउडर बना लिया जाता है।

उसके बाद कंपनियां इसको खरीद लेती हैं। पहली फसल तैयार होने के बाद दूसरी फसल भी अगले 80 दिन में तैयार हो जाती है। यानी एक फसल को दो बार काट सकते हैं। 180 दिन में यह खेती चार गुना ज्यादा मुनाफा देती है।”

एएमए हर्बल अगले एक वर्ष तक हर महीने आयोजित होने वाले अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ किसानों को मृदा स्वास्थ्य, मृदा संरक्षण एवं उर्वरक, बीज, सिंचाई, किसानों के लिए प्रशिक्षण एवं विस्तार, मशीनरी एवं प्रौद्योगिकी, कृषि ऋण, पौध संरक्षण, बागवानी, कृषि विपणन और समेकित कृषि की जानकारी देगा।

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