भीगी आंखों से मैंने खींची हैं, एक सूखे सजल की तस्वीरें

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लखनऊ। सृजन फाउंडेशन की ओर से सातवें उत्तर प्रदेश महोत्सव के छठे दिन गुरुवार को आशियाना कथा मैदान में सांस्कृतिक संध्या व काव्य संध्या आयोजन ने लोगों को भावविभोर कर दिया। स्मिता श्रीवास्तव के नेतृत्व में संगिनी महिला क्लब द्वारा सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया।

वैभवी ने गणेश वंदना से कार्यक्रम की शरुआत की। इशिका श्रीवास्तव ने ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ गाने पर सबको झूमने पर मजबूर कर दिया। सोनल ठाकुर ने ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ पर अपनी प्रस्तुति दी। पीसी श्रीवास्तव, पी के गोयल, एके परिहार, एके श्रीवास्तव, हेमंत दुबे एवं अनुराग तिवारी द्वारा क़व्वाली प्रस्तुत की गई।

उत्तर प्रदेश महोत्सव-2022 में सांस्कृतिक संध्या व काव्य संध्या का आयोजन

इस दौरान मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की सदस्य अंजू प्रजापति एवं विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य अनीता अग्रवाल थी। इसके पहले शिलालेख फाउंडेशन द्वारा काव्य संध्या का आयोजन किया गया जिसमें दर्जनभर से अधिक युवा साहित्यकारों ने भाग लिया।

शिलालेख फाउंडेशन के सचिव चंद्रेश शेखर ने बताया कि इस काव्य संध्या का उद्देश्य युवा साहित्यकारों से एक मुलाकात करने एवं उन्हें प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर प्रदान करना रहा है जिसमें अनेकों साहित्यकारों नें अपनी विभिन्न विषयों पर बेहतरीन प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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जनमानस का पर्यावरण की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए शाहबाज तालिब ने पढ़ा कि “भीगी आंखों से मैंने खींची हैं, एक सूखे सजल की तस्वीरें“। चंद्रेश शेखर ने ‘तुम नदी के उस किनारे और मैं इस बार बैठा। हां हमारे बीच कोई खास तो दूरी नहीं है। तैरना भी जानता हूं, यह भी मजबूरी नहीं है।।

नाव है, पतवार है, उद्विग्न है मन भी मिलन को पर तुम्हारी टेर में आमंत्रण पूरी नहीं है”। अनुज अब्र ने ‘तेरी चांदी से बेहतर है, तेरे सोने से बेहतर है। मेरा भारत तो दुनिया के हर एक कोने से बेहतर है। रामायण धर द्विवेदी “हम युगों से मौन धारे , एक दूजे के सहारे। यदि मिलन संभव नहीं तो, भूल जाना भी असंभव”।

नितीश तिवारी “जब नहीं मालूम हमको जान के पीछे है क्या, फिर भला इस मान और अपमान के पीछे है क्या । इसलिए तस्वीर खिंचवाते नहीं नजदीक से, देख ले कोई न इस मुस्कान के पीछे है क्या”। सुशांत मिश्रा “ये दुनिया खत्म हो जानी है एक दिन, गलतफहमी है हम जिंदा रहेंगे”।

योगी योगेश शुक्ला “सद्गुणों के सहित हो मेरी लेखनी, अवगुणों से रहित हो सदा वर्तनी , मां लिए ही रहो अपने शुभ अंक में, उठ न पाए कलम पर कभी तर्जनी। दीपक अवस्थी ने ‘एक कमरा दस किताबें सैकड़ों चिंताएं हैं। जिंदगी की फिक्र है मां बाप की आशाएं हैं। सोमनाथ ‘पीड़ा को जो अवसर समझे, सबके आगे बिछे पड़े हैं ।

चिंताओं की भाव-भंगिमा कुर्सीजीवी लिए खड़े हैं’ प्रियांशु वात्सल्य “हर कहानी में कहानी देखकर । बुझ गई है प्यास पानी देखकर। हर्षित मिश्रा जी “हर एक शख्स ब अंदाजे़ क़हर सामने है , उसे हरा के उठा हूं तो शहर सामने है। सन्तोष सिंह “ कार्माे पर विश्वास नहीं , ताकत का मेला जारी है।

राजनीति में हर शू देखो , लट्ठ-तबेला जारी है”। इस अवश्य पर दुर्गेश शुक्ला दुर्ग “ सर्वेश त्रिपाठी सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन शाहबाज तालिब एवं अध्यक्षता अनुज “अब्र” ने की। संध्या बाठला, अजीत कुशवाह, रोहित कश्यप, शैलेन्द्र मोहन, रोम श्रीवास्तव, कीर्ति मिश्रा, स्वाति जैन आदि उपस्थित रहे।

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