लखनऊ। श्रीलाल शुक्ल जन्मशती उत्सव गुरुवार को गोमती नगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के जुपिटर प्रेक्षागृह में आयोजित किया गया। इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड के भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रकोष्ठ की ओर से इस उत्सव का आयोजन किया गया।
इसमें में प्रदर्शनी, परिचर्चा, फिल्म शो, गायन, किस्सागोई और नाट्य प्रस्तुतियां हुईं। इस उत्सव के मुख्य अतिथि जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी को शिवपालगंज, बिहार या यूपी तक सीमित करके न देखा जाए। यह पूरे देश के लिए है।
इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में मनाई गई वरिष्ठ साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की जन्मशती
राग दरबारी जिस दौर में लिखा गया उस दौर से मौजूदा दौर में भले ही काफी बदलाव हो गया है लेकिन आज भी प्रदेश के सिस्टम में इस उपन्यास की झलक दिखाई पड़ेगी।
उत्सव में अभिनेता पंकज त्रिपाठी और अशोक पाठक ने राग दरबारी का अंश पाठ किया। इस दौरान उन्होंने पुराने फिल्मी गानों को शामिल कर राग दरबारी का एक अंश रही चिट्ठी पढ़ी। चिट्ठी ‘तुम्ही मेरे मंदिर’, ‘याद में देखों बना है यह हसीन ताजमहल’, ‘देखो मेरा दिल मचल गया’,
‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ जैसे खूबसूरत गानों के मुखड़ों को मिलाकर लिखी गई थी। इस दौरान पंकज त्रिपाठी ने कहा कि राग दरबारी में घास खोदने का मतलब रिसर्च होता है। शिवपालगंज में कोई कुछ नहीं करता यहां सब एक दूसरे की इज्जत करते है।
श्रीलाल शुक्ल कुछ रंग कुछ राग नामक पहले सत्र में लेखक महेंद्र भीष्म ने बताया कि श्रीलाल शुक्ल इस बात से नाराज़ रहते थे कि राग दरबारी की प्रसिद्धी में उनकी अन्य रचनाओं की चर्चा नहीं होती थी।
उन्होंने बताया कि श्रीलाल शुक्ल एक मुकदमें पर व्यंग्य लिखना चाहते थे जिसके लिए वह अंतिम दिनों में हाईकोर्ट का रिकार्ड रुम देखना चाहते थे पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
सहकारिता मंत्री जीपीएस राठौर ने कहा कि इच्छाएं अनंत होती है। हमें लगा था कि जम्मू कश्मीर की समस्याओं का अंत होगा तो आतंकवाद भी खत्म होगा लेकिन अब पाक की कश्मीर को भी भारत में मिलाने की इच्छा बढ़ आई है। उन्होंने कहा कि श्रीलाल शुक्ल जैसे व्यंग्यकार को जितना भी सम्मान मिले वह कम है। उनका राग दरबारी हर व्यक्ति हर नागरिक को पढ़ना चाहिए।
राग दरबारी कल आज और कल नामक दूसरे सत्र में राग दरबारी के लिखे जाने से अब तक उसकी प्रासंगिकता पर चर्चा हुई। इस सत्र में संचालक के रूप में किस्सागो हिमांशु वाजपेयी ने साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष शुक्ल से बात की।
इस सत्र में आशुतोष शुक्ल ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को डिप्रेशन में जा रही है। उन्हें राग दरबारी ज़रूर पढ़ना चाहिए। राग दरबारी डिप्रेशन की दवा है। इसे आप जहां से पढ़ना शुरू करें वहां से आपको कुछ नया सीखने को मिलेगा।
उन्होंने कहा कि यही राजनीति की विफलता है कि आज भी हम प्रेमचंद और श्रीलाल शुक्ल जैसे लेखकों को सार्थक सिद्ध कर रहे हैं। साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि राग दरबारी जिस भाषा में लिखा गया है। उस भाषा में ना लिखा गया होता तो शायद इतना लोकप्रिय ना होता।
उन्होंने इस उपन्यास को इतने आकर्षक ढंग से लिखा है कि इसमें ना कोई प्रधान घटना है ना कोई नायक है ना कोई नायिका है फिर भी इसे पढ़ने पर कोई कमी नहीं महसूस होती है। इसमें एक गांव जिसमें ठेठ गंवारपन है। गांव के एक शहर से जुड़ने पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभावों को उन्होंने बखूबी दिखाया है।
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स्मृतियों के आईने में श्रीलाल शुक्ल नामक तीसरे सत्र में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा – श्रीलाल शुक्ल सादगी और सरलता की प्रतिमूर्ति थे। वे भले ही बीए के आगे पढ़ाई नहीं कर पाए पर फिर भी उन्होंने खूब पढ़ा। इसी सत्र में कवयित्री वंदना मिश्रा ने बताया कि श्रीलाल शुक्ल उन्हें हमेशा जीवन से भरे दिखे।
संगीत की भी उन्हें गहरी समझ थी। श्रीलाल शुक्ल से वार्ता के दौरान ही यह पता चला था कि राग लंकादहन सारंग भी होता है। साहित्यकार शिवमूर्ति ने बताया कि कथाक्रम सम्मान के वे संरक्षक थे। इस दौरान श्रीलाल शुक्ल के पोते उत्कर्ष शुक्ल ने भी अपनी स्मृतियां साझा कीं।
विशेष सत्र में लोकगायिका मालिनी अवस्थी ने साहित्यकार जैनेन्द्र सिंह से बात करते हुए कहा कि रागदरबारी का लोकजीवन हमें जीवन जीने का नया नजरिया प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि लोकगीतों में अगर हम देखने तो महिलायें अपने दुःख को भी ऐसे व्यक्त करती हैं कि उसमें भी आशा नज़र आती है। लोकगीत भीषण स्थिति में भी व्यंग्य और हास्य की स्थिति को दर्शाते हैं। ‘सैयां मिले लरकइयां’ लोकगीत में एक नारी के जीवन की कितनी विकट परिस्थितियां है फिर भी इसे सुनो तो सहज हास्य उत्पन्न होता है।
कार्यक्रम में दर्पण संस्था की ओर से श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास राग दरबारी पर आधारित नाटक कथा शिवपाल गंज की नाटक का मंचन किया गया। रवींद्र त्रिपाठी द्वारा रूपांतरित इस नाटक का निर्देशन मनोज शर्मा ने किया।
नाटक में शिवपालगंज के छंगामल इंटर कॉलेज की राजनीति और उससे निकले व्यंग्य के तीरों ने लोगों को ठहाके लगाने पर मजबूर किया।
नाटक में ग्रामीण व्यवस्था, प्रशासनिक ढांचे और सामाजिक राजनीतिक विडंबनाओं का चित्रण किया गया। नाटक में गुरुदत्त पांडेय, सौरभ, मनीष, रोजी मिश्रा, मनोज वर्मा सहित कई कलाकारों ने रागदरबारी के मशहूर कलाकारों की भूमिका निभाईं।