न्यायमूर्ति बी. आर. गवई ने आज भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। वह देश के पहले बौद्ध और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश बने हैं। इससे पहले न्यायमूर्ति के. जी. बालकृष्णन दलित समुदाय से पहले CJI बने थे। न्यायमूर्ति गवई को राष्ट्रपति भवन में एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई।
Shri Justice Bhushan Ramkrishna Gavai sworn in as the Chief Justice of the Supreme Court of India at Rashtrapati Bhavan. pic.twitter.com/yo9qpCjNRK
— President of India (@rashtrapatibhvn) May 14, 2025
उन्होंने हिंदी में शपथ ली। उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है जो 65 वर्ष की आयु होने पर मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए। न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक समय का होगा और वह 23 नवंबर तक पद पर रहेंगे।
शपथ ग्रहण से एक दिन पहले बार एंड बेंच को दिए इंटरव्यू में न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “मैं हमेशा सामाजिक और आर्थिक न्याय का पक्षधर रहा हूं।” उन्होंने बताया कि न्यायपालिका में लंबित मामलों की संख्या को कम करना और निचली अदालतों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहेगा।
उन्होंने कहा, “मैं सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों तक लंबित मामलों की समस्या को प्राथमिकता से हल करना चाहता हूं। उच्च न्यायालयों का बुनियादी ढांचा बेहतर है, लेकिन निचली अदालतों में अब भी समस्याएं हैं।” उन्होंने माना कि उनका कार्यकाल केवल छह महीनों का है, इसलिए वे कोई बड़े वादे नहीं करना चाहते, लेकिन जो भी कर सकें, व्यावहारिक रूप से काम करेंगे।
उन्होंने बताया कि न्यायालयों में मामलों की सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया लंबित मामलों को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा, “हमारे यहां अभी दो दिन गैर-महत्वपूर्ण मामलों और एक दिन नियमित मामलों के लिए होता है, जिससे नियमित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है।” उन्होंने कहा कि वह अपने सहयोगी न्यायाधीशों के साथ इस पर चर्चा करेंगे और व्यावहारिक समाधान खोजने की कोशिश करेंगे।
हाल ही में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर कैश बरामद होने के मामले पर टिप्पणी करते हुए गवई ने कहा, “900 न्यायाधीशों में से ऐसे मामलों की संख्या बहुत कम है, लेकिन इतनी भी बर्दाश्त नहीं की जा सकती। जनता हमारे ऊपर आखिरी उम्मीद के रूप में भरोसा करती है।” हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वह इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की प्रक्रिया को तय नियमों के तहत ही देखेंगे।
केंद्र सरकार द्वारा कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय में हो रही देरी को लेकर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि वे सरकार के साथ संवाद स्थापित कर लंबित नियुक्तियों को जल्द से जल्द निपटाना चाहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि नियुक्तियों में पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ योग्यता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर कोई न्यायाधीश के परिवार से है, लेकिन योग्य है, तो केवल संबंध के कारण उसे नकारा नहीं जा सकता।”
न्यायमूर्ति गवई ने स्वीकार किया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में दलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए तेजी से पदोन्नत किया गया था। उन्होंने कहा, “विविधता से यह फायदा होता है कि विभिन्न पृष्ठभूमियों से आने वाले न्यायाधीश समाज की जमीनी हकीकतों को बेहतर समझते हैं।” उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हाईकोर्ट कॉलेजियमों से अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों, खासकर महिलाओं को प्राथमिकता देने की अपील कर रहा है।
उन्होंने कहा कि कोई भी न्यायाधीश आलोचनाओं से प्रभावित होकर निर्णय नहीं लेता। उन्होंने कहा, “एक न्यायाधीश को केवल अपने विवेक और कानून के आधार पर फैसला करना चाहिए, न कि आलोचनाओं के डर से।” उन्होंने कहा, “मैं सोशल मीडिया नहीं देखता। मैं न इंस्टाग्राम पर हूं, न एक्स पर। अगर आपका विवेक कहता है कि आप सही हैं, तो किसी की आलोचना से डरने की जरूरत नहीं है।”
पूर्व CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट में शुरू की गई तकनीकी पहल को जारी रखने की बात करते हुए गवई ने कहा, “हम इसे आगे बढ़ाते रहेंगे। हमारे पास एक अनुभवी तकनीकी अधिकारी है जो NIC से हैं और नई सुविधाओं पर काम कर रहे हैं।” न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, “मैं CJI पद छोड़ने के बाद कोई सरकारी पद नहीं स्वीकार करूंगा।”