लखनऊ। शिया पीजी कॉलेज के उर्दू विभाग के ओर से ‘‘बाकर अमानतखानी के मर्सिया की रोशनी में आधुनिक मर्सिया की विशेषताएं’’ पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत तिलावते कुरआन से हुई इसके बाद आये हुये अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ देकर किया गया।
जंग को इंसानियत से ही रोका जा सकता है : डाॅ.तक़ी आब्दी
मजलिस-ए-उलेमा के सेक्रेटरी मौलाना यासूब अब्बास ने मुख्य वक्ता के रूप में कनाडा के उर्दू के विख्यात विद्वान डाॅ. तकी आब्दी का स्वागत पुष्पगुच्छ देकर किया व मजलिस-ए-उलेमा के सद्र आयतुल्लाह मौलाना हमीदुल हसन ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया।
इस मौके पर डाॅ.तकी आबिदी द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘किरतास ए अमानत’ का विमोचन मौलाना यासूब अब्बास द्वारा किया गया। डाॅ.तकी आबिदी ने सम्बोधन में कहा की आज जब दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रही है कोई उर्दू नज्म मदद नहीं कर सकती है, क्यूंकि उसमें एहतेराम नहीं है लेकिन मर्सिया एहतेराम ए इंसान सिखाता है।
शिया कॉलेज से यह सन्देश पूरी दुनिया को दिया जा रहा है, हथियारों से जंग को रोका नहीं जा सकता है बल्कि इंसानियत से रोका जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि आज जो दुनिया में जंग के हालात बढे हुए है वह सिर्फ इस वजह से कि इंसान दूसरे इंसान का आदर नहीं कर रहा है, एक इंसान दूसरे इंसान की अहमियत नहीं समझ रहा है।
आज के समय में मानवाधिकार की जरुरत है। बड़े शायर बकर अमानतखानी के 36 मर्सिये जिसमें अमन, मोहब्बत, रसूल अल्लाह और उनके अहलेबैत (अस) की जिन्दगी के नमूने पेश किये गए हैं।
मर्सिया सिर्फ रोने रुलाने की कविता नहीं है बल्कि इज्जत से जिन्दगी गुजारने का दस्तावेज है। इमाम हुसैन (अस) मजलूम हैं लेकिन कर्बला में उन्होंने जुल्म के बायत के हाँथ तोड़ कर रख दिया।
जिसकी वजह से आज 1400 साल बाद हम यहाँ खड़े हैं। बाकर अमानतखानी साहब से मैंने मुलाकात की है जिन्होंने 40000 शेर लिखा है, 36 मर्सिया लिखा है।
मैंने 8 साल इस पर काम किया है और इसे किताब की शक्ल में पेश किया है। लखनऊ मर्सिया की जमीन है यहाँ मर्सिया पर और काम करने की जरुरत है। अमानतखानी के दोनों बेटों ने मुझ तक उनके काम को पहुंचाया है।
इस मौके पर बोलते हुए मजलिस-ए-उलेमा सेक्रेटरी मौलाना यासूब अब्बास साहब ने डाॅ.तकी आबिदी के कार्य की सरहाना करते हुये कहा कि मैं तो उर्दू अदब का एक तालिबे इल्म हूँ मगर डाॅ.तकी आब्दी ने समन्दर में उतर कर अदब के मोती निकाल कर दुनिया के समाने रख दिये हैं।
अयातुल्ला मौलाना हमीदुल हसन साहब ने अपने सम्बोधन में कहा कि उर्दू अदब लोगों को जानना चाहिए खासकर विद्यार्थियों को इस अदबी जिन्दगी से काफी कुछ सीखना चाहिए। उर्दू अदब पूरी दुनिया पर इसलिए छा गया क्यूंकि दूसरी भाषा की शायरी सीमित थी लेकिन उर्दू के साथ ऐसा नहीं हुआ, यहाँ मर्सिया में कर्बला को बयान किया गया।
मौलाना साइम मेहदी साहब ने अपने वक्तव्य में कहा कि उर्दू अदब के समंदर में डुबकी लगाना हर एक व्यक्ति के बस की बात नहीं है। इसमें कसीदा, नज्म, आदि आते हैं लेकिन मर्सिया को पढ़ने व सुनने के बाद इंसानियत का दिल रखने वाले के आंसू निकल आएँगे।
हम डाॅ.तकी आबिदी साहब के शुक्रगुजार हैं की वे अपने शोध कार्यों से मर्सिये में से हमारे लिए काफी इल्म लेकर आते हैं। महाविद्यालय के
प्राचार्य प्रो.शबीहे राजा बाकरी ने कहा कि हम मीर अनीस और मिर्जा दबीर के मर्सिये सुनते आये हैं लेकिन आज महसूस हुआ की बाकर अमानतखानी साहब ने जो मर्सिया लिखा उसमें काफी कुछ मौजूद हैं। इस मौके पर उन्होंने बाकर अमानतखानी के कुछ शेर भी पढ़े।
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इस मौके पर मुख्य रूप से मौलाना फरीद मेंहदी, राजा अमीर नक़ी खान, समीउल हसन तकवी, हसन अमानतखानी, अली अमानतखानी, डा.अली इमाम गौहर, उर्दू विभागाध्यक्ष डाॅ.नाजिम हुसैन खान, डाॅ.हसन मेंहदी मीरपुरी, प्रो.जमाल हैदर जै़दी, प्रो.बीबी श्रीवास्तव, प्रो.टीएस नकवी,
प्रो.मोहम्मद मियाँ, प्रो.एमके शुक्ला, डाॅ.जर्रीन जेहरा रिजवी, डाॅ.एमएम अबु तैय्यब, डाॅ.प्रदीप शर्मा, डाॅ.नगीना बानो, डाॅ.हसन मेंहदी, डाॅ.सीमा राना, डाॅ.केसी दूबे, डाॅ.अमित राय, डाॅ.अम्बरीष, डाॅ.कुँवर जय सिंह, डाॅ.अंकुर सिंह, डाॅ.राबिन वर्मा सहित सैकड़ो की संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।