निरंतर जारी रहता है रावणत्व और रामत्व के बीच होने वाला युद्ध

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लखनऊ । उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी संस्कृति विभाग द्वारा वाराणसी की रूपवाणी संस्थान की ओर से महाप्राण निराला’ पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कालजयी काव्यकृति “राम की शक्तिपूजा” की नाट्य प्रस्तुति गोमती नगर स्थित अकादमी के संतगाडगे ऑडिटोरियम में व्योमेश शुक्ला के प्रभावी निर्देशन में किया गया।

यूपी संगीत नाटक अकादमी  में “राम की शक्तिपूजा” का हुआ प्रभावी मंचन

इसके माध्यम से संदेश दिया गया कि रावणत्व और रामत्व के बीच होने वाला युद्ध निरंतर जारी रहता है। इस युद्ध में राजा राम की चिंता का सबसे बड़ा कारण था कि अन्याय जिधर है उधर शक्ति बल है। नाटक इस आशा के साथ विदा होता है कि नई पीढ़ी रूढ़ियों से मुक्त हो लोक न्याय का कार्य पूर्ण करेगी।

सुनील शुक्ला के सधे संचालन में हुए इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में आमंत्रित अतिथि ब्रिगेडियर रवीन्द्र श्रीवास्तव और लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी ने दीप रौशन किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के निदेशक तरुण राज भी उपस्थित रहे।

“राम की शक्तिपूजा” ने जगायी न्याय की आस

छाऊ, भरतनाट्यम और कथक से प्रेरित इस प्रस्तुति के अनुसार प्रभु राम और रावण युद्ध के दौरान युद्धरत राम, निराश हैं और हार का अनुभव कर रहे हैं। उनकी सेना भी खिन्न है। इसका कारण है कि शक्ति बल, रावण के साथ है। ऐसे में मर्यादापुरुषोत्तम राम शक्ति का आह्वान करते हैं।

आराधना में राजा राम, देवी को एक सौ आठ नीलकमल अर्पित करने का संकल्प लेते हैं। देवी मां, चुपके से आखिरी पुष्प हर लेती हैं तब प्रभु राम को याद आता है कि उनकी आँखों को उनकी माँ, नीलकमल कहा करती थीं।

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ऐसे में वह अपना नेत्र अर्पित करने के लिए हाथों में तीर उठा लेते हैं तभी देवी प्रकट हो जाती हैं वह प्रभु राम को आशीष देकर अंतर्ध्यान हो जाती हैं। इस प्रस्तुति में प्रभु राम की प्रभावी भूमिका स्वाति ने अदा की वहीं सीता और देवी दुर्गा के रूप में नंदिनी ने प्रशंसा हासिल की।

लक्ष्मण का किरदार साखी ने निभाया। राम भक्त हनुमान, विभीषण और जामवंत की भूमिका में तापस ने तालियां बटोंरी जब कि सुग्रीव और अंगद के रूपमें शाश्वत ने नाटक को गति प्रदान की। नाट्य संगीत ने प्रस्तुति का आकर्षण बढ़ाया। इसमें संगीत-रचना जे.पी.शर्मा और आशीष मिश्रा की रही।

व्योमेश शुक्ला ने बताया कि रूपवाणी बीते तीन दशकों से सक्रीय संस्था है। संस्था की ओर से अखिल भारतीय महिला कवि सम्मेलन से लेकर क्लासिकल काव्यकृतियों की संगीतमय प्रस्तुतियां भी की हैं।

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