कन्फ्यूजिंग और कमजोर है सालार की कहानी, नहीं दिखा केजीएफ का जादू

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सिनेमाघरों में प्रभास की फिल्म सालार रिलीज हो गई है। केजीएफ की तरह सालार की कहानी भी एक काल्पनिक दुनिया से शुरू होती है। अमेरिका से लौटी आध्या (श्रुति हसन) का जीवन खतरे में है।

आध्या भागकर एक महिला के घर छिप जाती है। वो महिला देवा यानी प्रभास की मां होती है। देवा उसे उन गुंडों से बचाता है। धीरे-धीरे आध्या को देवा और उसकी फैमिली की सच्चाई पता चलती है।

कहानी सेकेंड हाफ में खानसार की दुनिया में जाती है। खानसार एक ऐसी जगह जहां के लोग एक अलग दुनिया बनाकर रहते हैं। वे अपने आप को देश का हिस्सा नहीं मानते। उनकी खुद की आर्मी होती है। अंग्रेज भी उनसे सामने घुटने टेंक देते हैं। आजादी के बाद वहां पर राजा का शासन हो जाता है।

राजा के मरने के बाद सिंहासन की लड़ाई शुरू होती है। राजमन्नार (जगपति बाबू) छल कपट से राजा बन जाता है। वो इसके लिए प्रतिद्वंदियों की पूरी बस्ती को ही मरवा देता है। उसमें से कुछ लोग बच जाते हैं। राजमन्नार का बेटा वर्धा और देवा बचपन से दोस्त रहते हैं।

देवा आगे चलकर वर्धा को राजा बनाना चाहता है, इसके लिए वो दुश्मनों से लड़ता भी है। देवा का भी खानसार की सिंहासन से एक कनेक्शन है, अब वो कनेक्शन क्या है, इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

बाहुबली के बाद से ही प्रभास अपना 100% नहीं दे पा रहे हैं। इस फिल्म में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। इसकी एक मुख्य वजह प्रभास की घुटने की चोट भी है। उनकी बॉडी मूवमेंट पहले की तरह नहीं रह गई है।

पर्दे पर यह चीज साफ नजर आती है। प्रभास की एक्टिंग तारीफ के लायक है। उनके कुछ सीन्स ऐसे हैं, जिसमें मुंह खुला रह सकता है। यह उनकी पिछली कुछ फिल्में जैसे साहो, राधेश्याम और आदिपुरुष सेे काफी बेहतर है। फिल्म में उनके गिनती के डायलॉग्स हैं। कई सीक्वेंस तो बिना एक भी शब्द कहे निकल जाते हैं।

वर्धा के रोल में पृथ्वीराज सुकुमारन की अदाकारी अच्छी है। ट्रेलर के ठीक विपरीत फिल्म में उनके रोल को बहुत कमजोर रखा गया है। उन्होंने अपने रोल के साथ जस्टिस किया है। श्रुति हसन का स्क्रीन टाइम कम है।

दर्शकों को उम्मीद थी कि निर्देशक प्रशांत नील केजीएफ वाला जादू फिर से दिखा पाएंगे। यहां पर वो पूरी तरह फेल होते दिखे हैं। वे प्रभास समेत किसी भी एक्टर से उनका बेस्ट नहीं निकलवा पाए हैं। पहले हाफ में उन्होंने स्टोरी को बिल्कुल कन्फ्यूजिंग बनाकर रखा है। सेकेंड हाफ में उन्होंने जरूर गाड़ी पटरी पर लाने की कोशिश की है।

प्रशांत की फिल्मों में अक्सर सेपिया मोड देखने को मिलता है। इनकी फिल्में स्क्रीन पर थोड़ी डार्क लगती हैं। सालार में भी यही देखने को मिला है। डायरेक्टर ने VFX का अच्छा यूज किया है।

फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक साधारण है। आज के समय में जहां बैकग्राउंड म्यूजिक पर काफी ज्यादा काम किया जा रहा है, इस फिल्म में वो बिल्कुल नदारद दिखा। केजीएफ के बैकग्राउंड म्यूजिक की आज भी चर्चा होती है। सालार का बैकग्राउंड म्यूजिक कहीं से भी इसके आस-पास नहीं है।

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प्रभास के फैन्स इस फिल्म को एक बार देख सकते हैं। जो दर्शक यह उम्मीद लगाए होंगे कि फिल्म में कुछ नए एक्शन सीक्वेंस और थ्रिलर देखने को मिलेगा। उन्हें जरूर निराशा होगी।

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