लोक चौपाल में क्रान्ति विमर्श, देशभक्ति गीतों पर झूमे दर्शक

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लखनऊ। राजनीतिक कार्यकलापों के प्रति लोक भले ही कोउ नृप होवे हमें का हानी से अभिप्रेरित होकर उदासीन रहा हो किन्तु लोक गीतों ने उनमें स्वाधीनता की अलख जगायी। क्रान्तिकारियों की एक पूरी जमात ने देशभक्ति लोक गीतों से सम्बल प्राप्त किया और हंसते हंसते फांसी के फन्दे चूमे।

ये बातें बुधवार को लोक चौपाल में वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामबहादुर मिश्र ने कहीं। लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा डालीगंज के उमराव सिंह धर्मशाला में आयोजित मासिक लोक चौपाल में लोगों ने शहीदों को याद किया। देशभक्ति पर केन्द्रित गीत-संगीत की मनभावन प्रस्तुतियां भी हुईं।

शुभारम्भ लोककला अनुरागी श्रीमती नम्रता सिंह ने काकोरी के अमर वीरों की शौर्य गाथा के साथ किया। आशुतोष गुप्ता ने आजादी के अर्थ बताये। सौम्या गोयल ने आजादी के पूर्व और बाद के सांगितिक परिवेश को रेखांकित किया।

लोक गीतों ने जगाई स्वाधीनता की अलख : डा. रामबहादुर मिश्र

रचना गुप्ता, अर्चना दीक्षित, कनक वर्मा, नीलम वर्मा, संगीता खरे, सीमा अग्रवाल, रिंकी विश्वकर्मा, ज्योति किरन रतन, सौरभ कुमार कमल ने सांगीतिक प्रस्तुतियां दीं।

नन्हें बालक सैयद दानिल जैदी ने वन्दे मातरम की सस्वर प्रस्तुति दी। वहीं देशभक्ति गीतों की मनोहारी गायन प्रस्तुतियों में अविका गांगुली, मिहिका, अव्युक्ता, आद्रिका मिश्रा, अमाया सिंह, कर्निका सिंह, अथर्व श्रीवास्तव और गुनाश्री ने अंतरा भट्टाचार्या के निर्देशन में शहीदों को स्वरांजलि दी।

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वहीं निवेदिता भट्टाचार्या के निर्देशन में किंजल, यशस्वी, संस्कृति, आरना सिंह, स्नेहा प्रजापति, नेहा प्रजापति व अमाया सिंह ने दर्जनों देशभक्ति गीतों के मुखड़े पर तैयार नृत्य वैले प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम में सर्वश्री सत्यप्रकाश गुलहरे, रवि गुप्ता, निशा तिवारी, दिलीप श्रीवास्तव, राजनारायन वर्मा, शम्भूशरण वर्मा, डा. अनिल गुप्ता, नैमिष सोनी, भूषण अग्रवाल, अश्वित रतन सहित अन्य उपस्थित रहे। लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी ने कार्यक्रम का संचालन किया वहीं वरिष्ठ समाजसेवी सुनील अग्रवाल ने सभी का आभार जताया।

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